नई दिल्ली । राम जन्मभूमि के मालिकाना हक के मामले में 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो फैसला सुनाया था उस पर मामले से जुड़े कुछ पक्षों ने नाराजगी जाहिर की थी। इसी नाराजगी के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने 9 मई 2011 को दिए एक आदेश में पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था। अपने फैसले को सुनाने में हाईकोर्ट को करीब 40 मिनट लगे थे। कोर्टरूम लोगों की भीड़ से भरा हुआ था। सभी की नजरें हाईकोर्ट के कमरा नंबर 21 पर टिकी थीं। दोपहर 3:40 बजे फैसले के मूल आदेश को पढ़ना शुरू किया गया। दोपहर 4:20 मिनट पर सभी जज फैसला सुनाकर कोर्टरूम से बाहर निकलकर अपने चैंबर की तरफ चले गए थे। अपने आदेश में हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच एक समान तीन भांगों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले को देने वालों में जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस डीवी शर्मा शामिल थे। हाईकोर्ट ने 2010 में जो फैसला सुनाया था वह दरअसल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर आधारित था। इसका जिक्र अदालत ने भी अपने फैसले में किया था। इससे पहले हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वर्ष 2003 में विवादित ढांचे वाली जगह का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इस सर्वेक्षण के दौरान विवादित स्थल के नीचे कई खम्भे, चबूतरे और अन्य सामान मिला था। वर्ष 2003 से पहले 1975 में भी एक बार इस विवादित स्थल का सर्वे किया गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में यहां तक कहा था कि 450 वर्षों से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। सुन्नी वक्फ बोर्ड यह साबित नहीं कर सका कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने बनवाई थी या मीर बाकी ने, जो उसका सेनापति था। कोर्ट ने माना कि मस्जिद का निर्माण मंदिर के अवशेषों पर हुआ था, इसमें इनका इस्तेमाल भी किया गया था। कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों ही समुदाय के लोग इसका इस्तेमाल करते थे। लिहाजा इस जमीन पर अकेले सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा सही नहीं है। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के उस दावे को भी खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि विवादित भूमि पर 1949 तक उनका कब्जा था और 1949 में जबरन उन्हें यहां से हटा दिया गया। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा समय बाधित यानि देरी से दाखिल मानते हुए भी खारिज किया था।
Ayodhya Case: 2010 में हाईकोर्ट ने दिया था फैसला